प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 12
नालन्दा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय
(Education System in Ancient India: Takshashila,
Nalanda and Vikramashila Universities)
प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
अथवा
प्राचीन भारतीय शिक्षा के आदर्शों के विषय में आप क्या जानते हैं?
अथवा
प्राचीन भारत में शिक्षक तथा शिष्य सम्बन्ध बताइये।
अथवा
प्राचीन भारत में शिक्षा के उद्देश्यों एवं आदर्शों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. वैदिक काल की समयावधि क्या है?
2. वैदिक काल की शिक्षा की क्या विशेषताएँ हैं?
3. वैदिक काल की शिक्षा की रूपरेखा बताइए।
4. वैदिक काल में गुरु व शिष्य के सम्बन्ध बताइए।
5. वैदिक काल की शिक्षा की पाठ्यचर्या बताइए।
6. वैदिक काल की शिक्षण विधियाँ क्या थीं?
7. प्राचीन भारत में शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
8. वैदिक काल में शिक्षा की अवधि तथा शिक्षण संस्थाओं की आर्थिक व्यवस्था पर टिप्पणी, लिखिए।
9. वैदिक काल के शिक्षण संस्थाओं के क्या रूप थे?
10. वैदिक काल की शिक्षा की कमियाँ बताइए।
उत्तर-
वैदिक काल 800 ई०पू० से 1000 ई० तक
वैदिक काल उस काल को कहते हैं जिनमें वेदों की रचना हुई। यह वह काल है जिसमें शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था थी। हमारे इस कथन को प्रो० थामस के शब्द सत्य करने में बड़ी सहायता करते हैं। “भारत के वैदिक काल में शिक्षा की व्यवस्था पूर्ण रूप से ठीक थी। ऐसा कोई देश न था जहाँ शिक्षा के लिए प्रेम इतना पहले अपनी जड़ जमाये तथा इतना स्थायी तथा शक्तिशाली प्रभाव डाले था। वैदिक काल के साधारण कवियों से लेकर बंगाल के आधुनिक, दार्शनिक तथा अध्यापकों तथा विद्यार्थियों की एक बाधाविहीन श्रृंखला बनी रही।”
डॉ० एम० डब्ल्यू० थामस के इस कथन से हमें स्पष्ट हो जाता है कि वैदिककालीन भारत में शिक्षा अच्छी तरह से संगठित हो गई थी, जो अपनी विशेषताओं के कारण समस्त संसार के देशों में विख्यात थी।
वैदिक काल की शिक्षा की विशेषताएँ वैदिककालीन शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं जिनके कारण यह शिक्षा समस्त संसार के देशों में अपना नाम ऊंचा कर चुकी थी
1. धार्मिक आधार - वैदिक काल में शिक्षा का आधार केवल धर्म था। भारतीय संस्कृति और जीवन में धर्म प्रमुख अंग बन चुका था और शिक्षा लेना-देना मानव का धर्म था और इसकी चरम सीमा केवल मोक्ष की प्राप्ति थी।
2. वैदिक साहित्य का अध्ययन - वैदिककालीन भारत की शिक्षा केवल वेदों के अध्ययन तक सीमित थी। प्रो. मैकडानेल के शब्दों में
"Since the birth of the oldest vedic poetry, we find Indian literature, for a period of more than a thousand year, bearing an exclusively religious stamp, even these latest productions of the vedic age which cannot be called directly religious, are yet meant to further religious ends."
3. चरित्र-निर्माण पर बल देना - इस समय शिक्षा के द्वारा बालक के चरित्र का निर्माण किया जाता था ताकि वह बालक चरित्रवान बनकर अच्छा नागरिक बन सकें। जैसा कि हमें डॉ० पी० एल० रावत के कथन से भी ज्ञात होता है -
"This attitude to life was characterised by width of vision and they identified their duty with devotion to the ideal of summon bornm of mankind."
4. जीवन में ज्ञान का सर्वाधिक मूल्य मानना - वैदिक काल में जीवन से सम्बन्धित शिक्षा दी जाती थी। बालक को ज्ञान के द्वारा निर्देश दिया जाता था। यह भी इस काल की शिक्षा पद्धति से ज्ञात होता है कि जो व्यक्ति वेदों को नहीं समझता था वह मूर्ख शूद्र माना जाता था। वह ज्ञान का पात्र नहीं होता था। वह वास्तव में ज्ञान मनुष्य की सच्ची रोशनी है जो उसको सही मार्ग पर चलाती है। वेद का अर्थ - ज्ञान इसी कारण रखा गया है।
5. शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था थी - वैदिक काल में शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था थी जैसा हमें डॉ० सिंघल के शब्दों से भी ज्ञात होता है- “भारत के विचारशील मस्तिष्क निरन्तर इस तथ्य को स्वीकार करते रहे हैं। प्रत्युत उससे सदैव मार्ग दर्शन मिलता रहेगा
वैदिककालीन शिक्षा की रूपरेखा
वैदिक काल में शिक्षा का तात्पर्य - जीवन के हर दृष्टिकोण के फलस्वरूप वैदिक काल में चिन्तकों तथा समाज के लोगों का विचार भी शिक्षा के लिए अपनी विशेषता रखता है। इस काल में शिक्षा का तात्पर्य ज्ञान तथा ज्ञानार्जन से था। इस काल में शिक्षाओं एक तप था और इसी कारण शिक्षा लेने में अनुशासन, संयम एवं कठोर जीवन का पालन करना पड़ता था। जीवन में महान सत्य की प्राप्ति के लिए जो तप करना पड़ता था वही शिक्षा थी। अतः आधुनिककाल में शिक्षा की जो विशेषताएं हैं उन सबका पालन इस काल में होता था। इस काल में आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा नैतिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता था। इससे पता चलता है कि वैदिक काल में शिक्षा का तात्पर्य था ज्ञान की प्राप्ति जिससे आध्यात्मिक उन्नति थी।
शिक्षा का उद्देश्य तथा आदर्श - वैदिक काल के मनुष्य धर्मपरायण तथा एक ईश्वर भक्त थे नैतिकता पर अधिक विश्वास रखते थे। इस काल में शिक्षा के मुख्य उद्देश्य थे - 1. भक्ति प्राप्त करना, 2. व्यक्ति को सत्यं शिव सुन्दरम् को प्राप्त करना। 3. जीवन के संस्कारों तथा कृत्यों के करने की क्षमता प्राप्त करना, 4. अच्छा चरित्र निर्माण करना तथा 5. अपनी संस्कृति तथा परम्परा को बनाये रखना।
डॉ० अल्तेकर के शब्दों में "Infusion of spirit of piety and righteousness, inculcation of civic and social duties, promotion of social efficiency and preservation and spreadal national culture may be described as the chief aims and ideals of ancient Indian Eduation."
वैदिक काल में शिक्षा आरम्भ करने, शिक्षा प्राप्त करने तथा शिक्षा समाप्त करने के लिए निम्नलिखित संस्कारों का भी पालन करना पड़ता था-
1. विद्यारम्भ संस्कार,
2 उपनयन संस्कार,
3. प्रवेश संस्कार,
4. गुरुकुल का संस्कार
5. ब्रह्मचर्य संस्कार,
6. परिचर्या संस्कार
7. समावर्तन संस्कार।
इनसे पता चलता है कि वैदिक काल की शिक्षण व्यवस्था अच्छी तरह से संगठित थी।
गुरु-शिष्य के सम्बन्ध - वैदिक काल में गुरु तथा शिष्य के संबंध पिता-पुत्र के समान थे। गुरु का लक्ष्य विद्यार्थियों को सांसारिक कष्टों से मुक्त करना होता था। गुरु के कर्तव्यों के साथ-साथ शिष्यों के भी कर्त्तव्य थे, जैसा हमें एक विद्वान के शब्दों से ज्ञात होता है प्राचीनकाल की वैदिक शिक्षा में इस प्रकार केवल एक गुरु का ही महत्व नहीं था बल्कि शिष्य का भी महत्व था। गुरु-शिष्य का सम्बन्ध पारिवारिक था जनतंत्रीय था एवं श्रद्धा से पूर्ण था।
डॉ० पी० एल० रावत के शब्दों में - “He pledged devotion to him in thought, speech and deed and worshipped him as his own father of God."
वैदिक काल की शिक्षा की पाठ्यचर्या - वैदिक काल की पाठ्यचर्या के निम्नलिखित दो भाग थे.
1. आध्यात्मिक पाठ्यचर्या - इसके अन्तर्गत विद्यार्थियों को वेदों का ज्ञान नीतिशास्त्र, दैनिक जीवन की क्रियायें तथा दर्शन की शिक्षा दी जाती थी।
2. लौकिक पाठ्यचर्या - इसके अंतर्गत व्याकरण, ज्योतिष, साहित्य, गणित, विभिन्न कला- कौशल जैसे- धनुर्विद्या, शल्यविद्या, चिकित्साशास्त्र, वाणिज्य, शासनकला, अर्थशास्त्र तथा कृषि की शिक्षा दी जाती थी।
वैदिक काल में शिक्षा हर व्यक्ति को नहीं दी जाती थी। शिक्षा उसी को दी जाती थी जो शिक्षा ग्रहण करना चाहता था।
वैदिक काल की शिक्षण विधियाँ - इस काल में निम्नलिखित शिक्षण विधियाँ थीं- .
1. मौखिक विधि,
2. व्यक्तिगत विधि,
3. समस्या विधि,
4. स्वाध्याय तथा स्वयं अन्वेषण विधि,
5. वाद-विवाद और शास्त्रार्थ विधि,
6. व्यावहारिक एवं प्रयोगात्मक विधि,
7. व्याख्यान विधि
8. प्रश्नोत्तर व्याख्यान या कथाविधि,
9. सूत्र, सूक्ति, अन्योक्ति विधि
10. अग्रशिष्य शिक्षण विधि |
इन शिक्षण विधियों के द्वारा वैदिक काल में छात्रों की पढ़ाई होती थी।
वैदिक काल में अनुशासन - इसमें शिक्षा लेने तथा देने के लिए अनुशासन पर महत्व दिया जाता था। इसके साथ-साथ शारीरिक अनुशासन पर बल दिया जाता था। दंड कई प्रकार के इस काल में प्रचलित थे, जैसा हमें एक विद्वान के शब्दों से भी ज्ञात होता है -
“वैदिक काल में दंड व्यवस्था नहीं थी। यदि कोई अपराध या त्रुटि होती थी तो पश्चताप, उपवास तथा पुनः वैसा न करने का वचन देकर प्रायश्चित करते थे। अपराध के गंभीर होने पर छात्र का निष्कासन करते थे।
इस समय दंड दो प्रकार के दिये जाते थे। साधारण दंड समझाने-बुझाने तथा उपदेश देने में होता था। शारीरिक कर्म को अधिक मात्रा में कराकर भी दंड दिया जाता था।
वैदिक काल के विद्यालय, शिक्षा संस्था और केन्द्र
आजकल के समान वैदिक काल में विद्यालय नहीं थे। प्राइमरी शिक्षा पाठशालाओं में दी जाती थी। उस समय घर ही प्राथमिक पाठशाला था जहां उसको पढ़ना-लिखना सिखाया जाता था। माता-पिता तथा अन्य लोग बच्चों को घर पर पढ़ाते- लिखाते थे।
8-9 वर्ष के पश्चात् घर पर पढ़ा-लिखा बालक गुरुकुल, गुरु आश्रम या गुरुगृह में पढ़ने भेजा जाता था। इन संस्थाओं में मनोवैज्ञानिक परीक्षण के उपरान्त प्रवेश तथा शिक्षा शुरू की जाती थी।
इन शिक्षा संस्थाओं के समय का पालन होता था। बालक को प्रातः उठना पड़ता था, नित्य कर्म करने पड़ते थे। 7 से 11 बजे तक शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती थी। उसके पश्चात् भोजन करना और फिर 2 बजे से सायंकाल तक अध्ययन-अध्यापन करना पड़ता था। शिक्षा का सत्र श्रावणी पूर्णिमा से शुरू होता था और पौष पूर्णिमा को उत्सर्जन संस्कार के साथ समाप्त होता था। अतः सेमेस्टर प्रणाली के अनुरूप 6 माह तक शिक्षा चलती थी। हर माह में चार छुट्टियाँ होती थीं, त्यौहारों तथा पर्वो पर भी छुट्टी रहती थी, कुछ समय के पश्चात् विद्यालय का सत्र एक वर्ष का कर दिया गया। इस दृष्टि से आजकल की शिक्षा-व्यवस्था प्राचीनकाल के वैदिक काल के समान है।
वैदिक काल में शिक्षा की अवधि
शिक्षा संस्था या गुरुकुल में शिक्षा प्राप्ति की अवधि 12 वर्ष थी- स्नातक, बसु, रुद्र तथा आदित्य उपाधि वाले छात्र होते थे। विशेष अध्ययन की भी सुविधा होती थी, जो जितना अधिक समय देना चाहता था उसको उसी के अनुसार शिक्षा दी जाती थी।
वैदिक काल में शिक्षा संस्थाओं के आर्थिक साधन- वैदिक काल में शिक्षा संस्थाओं के आर्थिक साधन निम्न लिखित थे-
1. भिक्षा के द्वारा प्राप्त धन।
2. ग्राम सभा के द्वारा लिया जाने वाला दान।
3. व्यापारी द्वारा दिया जाने वाला दान।
4. राजा के द्वारा दिया जाने वाला दान।
5. धनी कर्म द्वारा दिया जाने वाला धन।
वैदिक काल के समस्त विद्यालय स्वायत्त शासन वाले थे। इन पर राज्य सरकार, राजनैतिक या फिर व्यावसायिक सम्प्रदायों का किसी प्रकार का भी नियंत्रण नहीं था। राज्य को इन शिक्षा संस्थाओं की शिक्षा की जिम्मेदारी थी।
प्रो० पी० एन० प्रभु के शब्दों में -
"Education in Vedic Age was free from any external control like that of the staff or Government or any party politics. It was one of the king's duty to see that the learned pandits pursued their studies and their duty of imparting knowledge without interference from any source whatever."
वैदिक काल में शिक्षा संस्थाओं के रूप वैदिक काल में शिक्षा संस्थाओं के निम्नलिखित रूप देखने को मिलते हैं -
1. गुरुकुल - जंगलों में गुरुकुल थे जैसे वाल्मीकि आश्रम तथा सन्दीपनि आश्रम जो बाद में बने।
2. चरण विद्यालय - इनमें किसी एक विशेष शाखा का अध्ययन होता था। ज्ञान की विशेष शाखा के अध्ययन विद्यालय चरण विद्यालय कहे जाते थे।
3. परिषद- विभिन्न चरणों का समूह विद्यालय थे। परिषद दस सदस्यों की एक सभा थी जो सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक तथा अन्य प्रकार की जटिल समस्याओं पर विचार तथा निर्णय करती थी। किसी-किसी छात्र की परीक्षा भी लेती थी।
4. सम्मेलन - राजा के दरबार के विद्वानों का सम्मेलन भी होता था। इस सम्मेलन में बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाया जाता था तथा धार्मिक विषयों पर शास्त्रार्थ होता था।
5. परिब्राजकाचार्य भ्रमण - अध्यापक घूम फिर कर शिक्षा दिया करते थे यह भी शिक्षा की संस्था का एक रूप था।
6. शिक्षा केन्द्र - विद्यालय का काम करते थे जो गुरु के स्थान थे ऐसी परम्परा आज भी हमें देखने को मिलती है। ऐसे ही केन्द्र बाद में तक्षशिला, पाटलिपुत्र, कन्नौज मिथिला, नदिया, धार, कल्याणी, तंजीर आदि बने।
वैदिक काल में शिक्षा का व्यापक प्रसार - वैदिक काल में जनसंख्या कम थी। इस कारण शिक्षा का व्यापक प्रसार बड़ी सरलतापूर्वक हुआ। इस समय शिक्षा का व्यापक प्रसार निम्नलिखित प्रकार का था-
1. स्त्री शिक्षा
2. व्यावसायिक शिक्षा
3. औद्योगिक शिक्षा
4. चिकित्सा शिक्षा
5. सैनिक
6. वाणिज्य शिक्षा
7. ललित कलाओं तथा हस्तकलाओं की शिक्षा
8. नागरिकता और राष्ट्रीयता की शिक्षा
9. सामाजिक कल्याण की सभा 1
10. सांस्कृतिक शिक्षा की पूर्ण व्यवस्था।
वैदिक काल की शिक्षा की कमियाँ - वैदिक काल में हमें शिक्षा में निम्नलिखित कमियाँ दिखाई देती हैं-
1. धन का अधिक खर्च होना - वैदिक साहित्य की पढ़ाई पर अधिक धन खर्च होता था, जो एक कमी के रूप में देखा जाता है।
2. कर्मकाण्ड पर बल देना - वैदिक काल की शिक्षा की यह भी कमी थी। इस पर छात्र का अधिक समय बीत जाता था।
3. लौकिक तथा सांसारिक ज्ञान के प्रति उदासीनता - वैदिक काल की शिक्षा की यह भी एक कमी थी। इस समय शिक्षा का परम लक्ष्य मोक्ष था।
4. धर्मोत्तर तथा आध्यात्मेतर, लौकिक तथा भौतिक विज्ञानों के विकास की ओर भी ध्यान नहीं दिया गया। इस कारण यह भी इस काल की शिक्षा की एक कमी दिखाई देती है।
5. वैदिक काल की शिक्षा में विचारों की स्वतंत्रता, धर्म के विरुद्ध विचार देने का अभाव था इससे अन्धविश्वास तथा रूढ़िवाद के भाव बढ़े।
6. लोक भाषा तथा साहित्य की अपेक्षा केवल संस्कृत भाषा तथा उसके साहित्य का ही विकास हुआ। लोक भाषा तथा उसके साहित्य की उन्नति नहीं हुई।
7. कौशल शिक्षा (तकनीकी) को गिरी हुई दृष्टि से देखा गया जिसके कारण इस प्रकार की शिक्षा का विकास नहीं हो पाया।
8. उत्तर वैदिककालीन भारत में वर्ण व्यवस्था के कारण निम्न वर्ण को शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकी जिसका प्रभाव बुरा पड़ा।
9. स्त्री शिक्षा पर भी कम ध्यान दिया गया, जिसके कारण नारी शिक्षा आज तक पनप नहीं सकी है।
10. वैदिक काल में एकांगी विकास पर अनावश्यक बल दिया गया। इसके बाद की सन्ततियों में भी एकांगी विकास हुआ।
वैदिक काल की शिक्षा पर प्रो० एम. एच. सिंघल का कथन है "वैदिककालीन शिक्षा शैली जिसमें मौलिक प्रवचन, व्याख्यान, श्रवण, स्मरण, मनन, प्रश्नोत्तर, शंका समाधान, वाद-विवाद आदि आज भी विज्ञान, कला, वाणिज्य आदि विभिन्न विषयों के पठन-पाठन व्यवहार योग्य है और उपयोगी सिद्ध हो सकती है। शिक्षा के कुछ सामान्य सिद्धान्त जैसे व्यक्ति पाठक, छोटी कक्षायें व्यस्त दिनचर्या अच्छी आदतों का निर्माण, शिक्षा को जीवन मानना आदि आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना वैदिक काल की शिक्षा को प्राप्त था।"
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- प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
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- प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
- प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।